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जहांगीर बादशाह सं० १६६२।

का राग द्वेष छोड़कर हरदा मनुष्यको जैसी व्यवस्था हो वैसी अर्ज करते रहें।"

तूरान जीतनेका विचार।

"मैंने परवेजले जाते समय कह दिया था कि जो राणा अपने पाटवीपुत्र कर्ण समेत हाजिर होजावे और अनुचर्य्या स्वीकार करे तो उसके देशको मत बिगाड़ना। इस सिफारिशके दो प्रयोजन थे एक तो यह कि तूरानकी विलायत जीतनेका विचार मेरे पिताके मनमें रहा करता था। परन्तु जब कभी उन्होंने यह इरादा किया तभी कोई न कोई विघ्न पड़ गया। अब यदि राणाको लड़ाई एक तरफ होजाय और यह खटका जोसे निकल जाय तो मैं परवेजको हिन्दुस्थानमें छोड़कर अपने बाप दादोंके देशको चला जाऊं। वहां अभी कोई जमा हुआ हाकिम नहीं है। बाकीखां भी जो अब- दुल्लाखां और उसके बेटे अबदुलमोमिनखांके पीछे जोर पकड़ गया था मर चुका है। उसके भाई वलीमुहम्मदका जो इस समय उस देशका अधिपति है राज्य नहीं जमा है।"

"दूसरे दक्षिण जीतनेको तय्यारी करना जिसका कुछ भाग मेरे पिताके समयमें लिया गया था अब मैं उस देशको एक बार अपने राज्य में मिलाया चाहता हूं परमेश्वर मेरे यह दोनो मनोरथ पूरे करे।"

मिरजा शाहरुख।

बदखशांके हाकिम मिरजा सुलेमानके पोते मिरजा शाहरुख, को अकबरने पांच हजारौ मनसब और मालवेका सूबा दिया था जहांगीरने सात हजारी करके उसे उसी सूर्वमें स्थिर रखा। अकबर भी इस मिरजाका बहुत मोन रखता था। जब अपने बेटोंको बैठने का हुक्म देता तो इसको भी बिठाता।

ख्वाजा अबदुल्लंह नकशबन्दीका कसूर माफ होकर जागीर और मनसब बहाल रहा। यह बादशाहको छोड़कर उसके बापके पास चला आया था।

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