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जहांगीर बादशाह संवत १६६४।

इस जगह गक्खड़ोंके देशकी सीमा समाप्त होती है। बादशाह गक्खड़ों को वास्ते लिखते हैं कि अजब पशुप्रकृतिके लोग हैं आपस में लड़ते झगड़ते रहते हैं। मैंने बहुत चाहा कि इनके झगड़े निबड़ जावें परन्तु कुछ सफलता न हुई।

१२ मुहर्रम (बैशाख सुदी १३) बुधवारको बाबा हसन अब्दाल में पड़ाव पड़ा। यहांसे एक कोस पूर्वको एक नाला है जिसका पानी बहुत बेगसे गिरता है। बादशाह लिखता है--"काबुलके तमाम रस्ते में इसके समान और कोई नाला नहीं है कशमीरके रस्ते में जरूर ऐसे तीन नाले हैं।

एक झरनेके बीच में जहांसे इस नालेका पानी आता है राजा मानसिंहने कुछ मकान बनाये थे। यहां आध आध गज और पाव पाव गजको लम्बी मछलियां बहुत थीं इसलिये बादशाह तीन दिन तक इस सुरम्य स्थानमें रहा। शराब पी और मछलियां पकड़ी। वह लिखता है--"मैंने सफरादामको जिसे हिन्दीमें भंवरजाल कहते हैं अबतक अपने हाथसे पानी में नहीं डाला था क्योंकि उसका डालना सहज नहीं है पर यहां अपने हाथ से डालकर दस बार मछलियां पकड़ी और नाकमें मोती डालकर छोड़दीं।"

"हसनबाबाका समाचार वहांके इतिहास जाननेवाले और रहने वाले कुछ नहीं बता सके यहां जो प्रसिद्ध जगह है वह एक नाला है जो पहाड़ से निकलता है बड़ा साफ सुथरा है। मानो अमीर खुसरोने उमौके वास्ते कहा है "इतना साफ है कि उसके नीचेकी रेतके कण अन्धा भी अंधेरी रातमें गिन सकता है।"

अकबर बादशाहके वजीर खाजा शमसुद्दीन खाफीने यहां चबूतरा, कुण्ड और अपनी कबरके वास्ते एक गुंबद बनाया था। कुण्ड में पानी इकट्ठा होकर बागों और खेतों में जाता था। पर मरनेके पीछे यह गुंबद ख्वाजाके कुछ काम न आया। हकीम अबुलफतह गीलानी और हकीम हमाम दोनों भाई जो अकबर