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जातिभेद का उच्छेद


पड़ा। उनके नये घरों में उनके साथ केसी बीती, इसका वर्णन करना यहाँ ठीक नहीं है।

गुजरात के अन्तर्गत कविथा ग्राम की दुर्घटना अभी पिछले साल की ही बात है । कविथा के हिन्दुओं ने अछूतों को आज्ञा दी कि तुम गाँव के सरकारी स्कूल में अपने बच्चों को भेजने का आग्रह मत करो । सवर्ण हिन्दुओं की इच्छा के विरुद्ध अपने नागरिक अधिकार के उपयोग करने का साहस करने के लिए बेचारे अछुतों को कितना कष्ट सहन करना पड़ा, यह सब कोई जानता है। इसका वर्णन करने की यहाँ आवश्यकता नहीं । गुजरात के अहमदाबाद जिले के जनू नामक गाँव की एक घटना सुनिये । नवम्बर सन् १९३५ में वहाँ के कुछ खाते पीते अछूत परिवारों की स्त्रियों ने धातु के बासनों में पानी लाना शुरू किया । अछूतों द्वारा धातु के बासनों के उपयोग को सवर्ण हिन्दुओं ने अपना अपमान समझा और अछूत स्त्रियों की ढिठाई के लिए उन पर हल्ला बोल दिया ।

जयपुर राज्य के चकवारा गाँव की एक हाल की घटना है। वहाँ के कुछ अछूतों ने तीर्थ-यात्रा से लौटकर गाँव के अछूत भाइयों को भोज देने का प्रबन्ध किया । उन्होंने घी के पकवान बनाये । परन्तु जब अभी अछूत लोग भोजन कर ही रहे थे कि हिन्दू लोग लाठियाँ लिये हुए सैकड़ों की संख्या में वहाँ आ धमके। उन्होंने उनके भोजन को खराब कर दिया और खाने वालों को पीटा । वे बेचारे जान बचाकर भाग गये । इन निहत्थे अछूतों पर यह घातक आक्रमण क्यों किया गया ? इसका उत्तर यह दिया गया कि क्योंकि अछूत आतिथ्य-दाता ने घी के पकवान बनाने‌