पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१०४

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हैं। यदि एक प्राइव किसी दूसरे प्राम-नामधारी मनुष्य ही कथा से भगा में जाय, तर तो वह आपकी दृष्टि में उपभिरारी और कुकर्म नहीं । पर यदि वह किसी खत्री-सड़की से विधिपूर्वक निवाई कर ले, लो आप उसे लुपा कहते हैं । अन्य ठिाने ? बा कहीं वरने गई है ? क्या परशुराम के पिता यमदग्नि अाअा जिन्हें ने चत्रिय रेणुका। से, अंगो ब्राय जिसने श्रीरामचंद्र की बन चत्रिम शांता से और अगस्त्य ऋण जिसने पत्रिका मुद्रापा से विवाह किया, सच कुम भौर लुकचे थे ! धमकतार ! अरा रोश का वचा कीजिए। आपका जाति-ति सोकर विवाह करने को शराब की दुकान या छला:ोठी खोजना कहना बुद्धि-विभ्रम से सजीवनी को सुरा समझना है। सच है, विनाश ते विपरीत बुद्धिः । यदि इस शराब की दुकान का हर हैं, तो पहले अपने मी मुसलमानों और ईसाइयों के विवाह बंद कराइए, हे प्रत्येक जति की हिदू-विधवा और सधवा को छिप कर जाते और बझार तक नहीं लेते। क्या उपर्युक्त पूज्य महर्षिय-यमदग्नि, भंगी और अगस्त्य---ने शराब की दुकानें खोजी थीं ? क्या जाति-पति के दोसल्ले को सोने के कारण स्वर्गीय देशभक्त सी० आर० दाम, नाहौर के प्रसिद्ध व्यापारी जाली इरकिशनलाल और श्रीमती संताबाई परमानंद, एम० ए० बैरिस्टर Ph. 1). (जिन्होंने ग्राम- कुलोत्पन्न होकर स्वर-कुलोत्पन्न श्रीयुत परमानंदजी आई० मी० ए० के साथ विवाह किया है) जाति-पाँति के नाम से कम संभ्रांत नागरिक हैं। | यदि जाति-पाँति तोडकर विवाह करने को श्राप छल्ला कोठी खोलना समझते हैं, तो जिस समय पूने के इस क्षण-कुल की कन्या मालिनी बाई बी० ए० ने एक मुसलमान गुस्ताख़ के साथ विवाह विमा था, जिस समय बाय-पुत्री भिस गांगुली ने दिल्ली के मैरिस्टर