पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१०७

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रिवाज का अलिखित पता जिसे स्कृत में सदाचार ते ।। कि यज्ञियय करना है-- अतः स्मृतः सदाचारः स्वस्य में प्रियममनः । सम्यक संकल्पजः मो धर्ममूलमंदं स्मृतम् । अयो-धर्म ( झानून ) के मुन्न ये हैं---वेद, अमृत, अच्छे मनुष्य के काम ( सदाचार ), अपने अंत:करण का तर्कसंगत प्रदेश, अभ संकल्प से अस्पन्न हुई कामना अर्थात् लोक-दिन की इच्छा ।। | वह एक अमाजशास्त्र-संबंधी प्रसिद्ध नियम है कि रीति-रिवाज समय की प्रगति के साथ बदजते हैं। ऊर की अब गते प्रस्तावित वित्र के उद्देश्य नधा भाव के विरुद्ध हैं, क्योंकि हिंदुओं की भारी बहुसंख्या इसके पक्ष में नहीं। | उसर- अपने इस बात का कोई प्रमाण नहीं दिया कि वह दिया थाज्ञवल्क्य की उपयुक्त कसौटी के विरुद्ध है। केवल इतना कह देने से ही आपकी बात मान्य नहीं हो सकती । इम तो समझते हैं, यह बिकुछ उसके अनुसार हैं। फिर यह भी ठीक नहीं कि हुत-से हिंदू इपके पच में हैं। दूसरे, बीमार कड़वी दवा पीने से सदा चरा करता है, चाहे । जनता में हो कि इससे मुझे आराम । जायेगा । माक्षेप-..-सर रवींद्रनाथ f-पाँति ६ विरुद्ध हैं। उनके प. वादा भी इसके विरुद्ध दी थे। पर क्या उनमें से किसी ने भी अपनी किसी संसान का विवा६ मा में बाहर किया ? यदि वे हृदय से ति-पति के विरोधी होते, तो ज़रूर कर्म में भी इम तोड़ दिखाते । इसी प्रकार अच्छे-अच्छे आर्य समाज और सिक्स भी अपनी विरादरी मैं री विवाह करते हैं। | उत्तर ---यह डोर है, यदि रवींद्र माथी ठाकुर के बाप-दादा और सिवा- आप भी जाति-पाँति सोकर अपना और अपनी