पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१०८

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( ३८ ) संतान की विश करते, तो अंतरजातीय विचारों हव प्रचार हो गया होता । पर इसका यह मतद। कदापि नहीं कि जो काम पिता, किसी राधट । कठिनाई के कारण, नहीं कर सका उसे पुत्र भी न रे । यदि आपके विरोध में अब श्रीरवींद्रनाथ भी जाति-पति को बाने में क्रियात्मक पग न बता सके, तो कल अप उनकी संतान को भी कहेंगे कि तुम्हारे पिता ने अत-ति को न मानते हुए भी जाति-पति नहीं तोड़ी, तो तुम अब बयों सोते हो ? क्या तुम इससे अधिक योग्य हो ? । आक्षेप---आति-पति-तोक विधाहों से जो संताम शपथ होगी, क्सकी नई मूर्ख जातियों में श्रछता और दक्षता के लिये द्वेच और डाई होगी, क्योंकि इस समय ऐस कोई नियम नहीं, जिससे इस बासि-पति-ताके विवाह की संतानों की जातियों का निश्चय किया जा सके, मद्यपि में सब अंत्यज समझी जायेंगी । मिश्र-विवाहों की सत्ता के उनके माता-पिता की जीत से ना गिना जाने के रणी इतनी उप-जातियाँ पैदा है। कई हैं। उत्तर---शाति-पाँति-सो छ। योग कोई नई जातियों नहीं पैदा करने जा रहे । वे तो जाति-ति । समूल नाश चाहते हैं । । कोई जाति से मी गं, तो उसके ऊँची प न होने का प्रथम हैं। कैसे पैदा होगा ? मनुष्य जी काम करेगा, हो कहतायगा । अब इससे पूछा जायगा कि तुम कौन हो, तो वह कहेगा, मैं हिंदू, आर्य समाजी, सिक्ख, जैन । ब्राझ ; डॉक्टर, लोहार, वीज, म्या- पारी या मजदूर हैं । इस जाति की जरूरत ही क्या है ? किसी श्वीनी या फ्रांसीसी से पूछिए कि तुम ब्राह्मण ॥ था खत्री, तो था पापको जो उत्तर देगा, वही जाति-पति के बंधन से मुक्त हिंदू से सकेगा । आक्षेप-यदि किसी श्रेणी के लोगों के अंतरजातीय विवाह