पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१०९

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की जरूरत है, तो बम योगों को हिंदू में गिना जाय और इस गिर आ नाम वृि:अंतरजातीय विवाह-बित्न न रखा जाय । संदिग्ध वासियों और चरित्रों के वोग की खातिर, जिनके प्रतिनिधि होकर मिस्टर पटेम शोज रहे हैं, संभ्रोत और सुनिश्चित जातियों के लोगों का अपमान किया जाम, क्योंकि यह बिल प्रतिक्षित और संग्राम लोगों के लिये नारों, वरिक निर्लज और समाज के तबद्ध के इसर---र जाति-पति-तोड़कों को अपशब्द कहने से अपना संत और प्रतिछित ना से सिद्ध करसे हैं। क्या अपनी आखि की स्त्री को छोड़कर दूसरी जाति की स्त्री से विवाह कर लेने-मात्र से । ममुख्य सरित्र-६न हो जाम है ? परम पूछते हैं, आपको विदू- धर्म को ठेकेदार किसने बना है, जो अप दूसरों को बाहर निकासा देने का प्रदेश कर रहे हैं। भा य द कोई आपसे कहे कि आप ब्राह्मण नहीं, कायस्थ हैं, तो सिधा इसके कि अप यं अपने । ब्राह्मण-ब्राह्मण कहने जायें, आपके पास ब्राह्मण ने का क्या प्रमाण है ? क्या एक कायस्थ जर्नलिस्ट में और आपको कोई ऐसा फ्रक्क है, छिमें आपके कहे विन। चोग आप ही देख सकें । पहले भी इसी प्रकार निकाय निकाल कर अपने मन अरोड़ मुसलमान और सारा मरा, अछुन अन दिए हैं। यदि इस पर भी जी की जयन शांत नहीं हुई, तो बेशक जाहि पति-तोर को हिंदू-धर्म से बाहर निकाल जिए । पर मुश्किल यह है कि अब शंकराचार्य का शुग नहीं । कहीं अापकी मुसमान न बनना पड़े। आक्षेप--विदुओं में जितने योग्य पुरुष हुए, वे सब जाति-पाँति के भीतर होनेवाले विचारों की ही संतान हैं। जाति-पाँति तो विवादों से पोग्थ और सदाचारी समान नहीं उत्पन्न होती। उत्तर--जाति-पति के बंधन में जकड़ा होने के कारण सभी