पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/११०

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( ३• ) विवाह आति के भीतर ही होते हैं । इसलिये असे-से-बड़े और गं३ मे-गंदे दोनो तर के मनुष्य इन्हों विवाद से पैदा हुए हैं। पर पाश्चात्य देशों में जहाँ जन्म-मूख जाति-पति का नाम-निशान तक नहीं, ऐसे-ऐसे विज्ञानाचार्य, ऐसे-ऐसे योद्धा, ऐसे-ऐसे विचार और ऐसे-ऐसे राजनीतिज्ञ उत्पन्न हुए और होते हैं कि उनके सामने पापकी बताई नामी सूर्य के सामने दीपक जान पाती है । जय ५ अंतरजातीय विवाह का प्रचार था, तर यहाँ भी परशुराम, कणे, विदुर, व्यास, वसि और पराशर जैश होते थे। क्या ये पूज्य महा: राय आपके गिनाए सेन, तिके, बनर्जी, विद्यासागर, राय, भोप, और मानवीय से कम अग्य थे ? क्या जिन ब्राह्मण विद्वानों ने औंसद्ध में इस बिल का समर्थन किया, ३ इन जैसे-छ। संभ्रांत नहीं है आक्षेप–माति-पाँति ने व्यापारी दुनिया में मुकाबले की बुराई को रोक है, और थोड़े से हाथों में से धन को इकट्ठा न होने विया, जो कि थोरपाय पूंजीवाद (Capitalism ) में मारी | उत्तर--सह बात सत्य नहीं । जितना धन इस समय द्विजनाम- पारियों के पास हैं, उस ववव भाग भी अछूतों और शूद्रों के पास नहीं। यदि जाति-पति को माननेवाले ब्राय, डॉक्टर, वैद्य, जमींदार, साहूकार, इंजीनियर, मजिस्ट्रेट, ठेकेदार और सरकारी नौकर होना ड्रो से और अपना सारा धन वैश्यों को दे दें । यदि एप्रिय नामधारी बैंक, दुकान, वकीलं, अध्यापक, डॉक्टरी द्वारा धन कमाना छार ६ ; यदि वैश्य-नामधारी जत्र, मजिस्ट्रेट, वकील, अध्यापक बनवा छोड़ दें, तो आप यह त कह सकते है । आप तो यह चाहते हैं कि शूद्र और अछूत कम ज्ञाभदामक काम करते हुए हारी। बने हैं, और आप जिस काम में भाभ देखें, वही करने लगे । यति इसी मुकायचे की दौडधूप से समाज से बना है, तो अँगरेज़ों से