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पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/११७

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ऐसे अवसर पर हमारा क्या कर्त्तव्य है यह बङा महत्वपूर्ण प्रश्न है ।

एक और बात भी है, इस समय आर्यसमाज और आर्य- जाति का यदि कोई मुख्य दोष बताया जाता है तो वह शुद्धि आन्दोलन तथा दलितोद्धार के कार्य का चलाना है, यह समय- धर्म है, परन्तु विधर्म्मियों की इन्हीं दो बातों से जड करती है, इसीलिये वह तिलमिला रहे हैं, इस समय की परिस्थिति को किसी भी दृष्टि से देखा जाय आर्य-जाति के संगठन की भारी आवश्यकता प्रतीत होती है, विघर्मियों में से जो व्यक्ति अपने अनुकूल हो सकते हैं उन्हें भी अपनाने की आवश्यकता है और अपने तो छोटे मोटे जो भी कोई हों उन्हें गले लगाने में ही हमारा कल्याण है । संगठन, शुद्धि और दलितोद्धार इस समय हमारे जातीय जीवन के प्राण-स्वरूप हैं ।

परन्तु इन तीनों ही बातों में एक भारी विघ्न है और वह है वर्तमान १८००० जातों पांतों का बन्धन, इतने भागों में बँटी हुई हमारी जाति विरोधियों के सामने कुछ कर धर नहीं सकती, पंजाबकेसरी श्री लाजपतरायजी ने पिछले दिनों में सक्खर में वक्तृता देते हुए कहा था कि हिन्दुओं के पास अपने प्रतिपक्षियों की अपेक्षा न धन की कमी है न शारीरिक बल की, मस्तिष्क-शक्ति में तो वे संसार की किसी जाति से कम नहीं हैं, इतना होने पर भी