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जात-पांत का गोरखधंधा


यह उचित भी है क्योंकि अब जीवन निर्वाह की समग्र सामग्री उपस्थित हो तब ही मनुष्य जीवित रह सकता है। अतः उस परम द‌यालु परमात्मा ने जीवनोपयोगी सब सामग्री बना कर मनुष्य को जन्म दिया ।

बहुधा लोग पूछते हैं कि मनुष्य जाति किस स्थान पर उत्पन्न हुई । इस प्रश्न की उन्नर श्री स्वामी दयानन्द सरस्वती महाराज ने अपने सत्यार्थप्रकाश के अष्टम समुल्लास में विस्तारपूर्वक दिया है और बतलाया है कि हिमालय के उत्तर में जो ऊंचा स्थान है जिसे आजकल 'तिब्बत' कहते हैं वहीं मनुष्य जाति पैदा हुई और यह भी बताया है कि हज़ारों स्त्री पुरुषों ने अपने पूर्व कर्मों के अनुसार युवा अवस्था में जन्म लिया, क्योंकि यदि बाल्यावस्था में पैदा होते तो उनको कौन पालता और यदि वृद्धावस्था में वह संसार में भेजे जाते ते उनकी सेवा कौन करता है इसलिये संसार में जो इस समय एक जनसमूह नजर आ रहा है यह किसी एक स्त्री पुरुष की सन्तान नहीं है प्रत्युत बहुतसे स्त्री पुरुर्षों की सन्तान है । अतः यह सिद्धान्त कि किसी एक स्त्री पुरुष से यह मनुष्य समुदाय पैदा हुआ है, श्रममूलक होने से माननीय नहीं है सकता, क्योंकि न तो सत् शास्त्रों से इस की पुष्टि होती है और न विवेकपूर्ण बुद्धि ही इसको स्वीकार कर सकती है । ऐसा मानना केवल अंधश्रद्धा का ही परिणाम है।