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जाति-भेद क्या है

व्याख्या-किसी भी शरीर को देखो वह बहुत से अवयवों का संयोग विशेष दिखाई देगा। मनुष्य-शरीर को ही देखिये, वह हाथ, पांव, मुख, नाक, कान, आंख आदि अवयवों से बना हुआ है। इसी तरह पशुओं में मी अवयव-संयोग है। वृक्षों के अवयव दूसरे प्रकार के हैं। उनके अवयव पेड़, शाखा, पत्ते, फूल और फल हैं। उनकी जाति इनही से पहचानी जाती है।

विक्ष पाठक ! अब अच्छी तरहसमझ गये होंगे कि जाति आकृति अर्थात् शारीरिक बनावट को देखते ही जानली जाती है। इसके लिये किसी से पूछने या तहकीकात करने की जरूरत नहीं होती।

महाभाष्यकार महर्षि पातञ्जलि भी महाभाष्य में जाति का लक्षण इस प्रकार करते हैं:-

"आकृतिग्रहणा जातिः"

अर्थः- व्यक्ति के देखने से ही जिसका प्रत्यक्ष होता है उसको जाति कहते हैं।

ऊपर बताये हुये नियम के अतिरिक्त दूसरा नियम जाति के जानने का न्यायदर्शन में यह बताया गया है कि-

"समानप्रसवात्मिका जाति:"

इसका यह तात्पर्य है कि जिन के नर और नारी के मेल से समानरूप से सन्तान पैदा होती है, वह एक जाति के है। एक