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आर्यग्रन्थों में जाति का लक्षण

उक्त लक्षण मनुष्यों में चरितार्थ नहीं होता

(१) पहली कसौटी समान आकृति की ( अर्थात् शारीरिक बनावट की) है। सो जाहिर है कि सारे संसार के मनुष्यों के शरीर के अवयव एक से हैं। सिर, आँख, कान, नाक, मुख, हाथ, पैर, उँगलियां आदि में भिन्न २ पशुओं की भाँति अन्तर नहीं है । घोड़ा और बैल दोनों चौपाये हैं मगर दोनों के पाँव में अन्तर है । घोड़े के पांव में सुम सावित होता है और बैल के पाँव में खुर फटे हुए होते हैं। इसी तरह सव अंगों का विचार कर लेना चाहिये। अतः पहली कसौटी से मनुष्यमात्र एक जाति के सिद्ध हो गये।

(२) दूसरी कसौटी नर और नारी के मेल से सन्तान का सिलसिले और दोनों में प्रेम की है । सो भारतीय नर ना- रियों का तो कहना ही क्या, बहुत से महानुभाव-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य नामधारी-जो इंगलेण्ड, अमेरिका आदि देशों में विवाह करके अथवा बिना ब्याहे स्त्रियाँ लाये हैं उनका आपस में प्रेम है और बराबर सन्तान हो रही है। भारत में ही-मनुष्यों में जाति-निर्माण कार्य हुआ है और धीरे २एक की जगह १८००० जातियाँ बन चुकी हैं । परन्तु ये सब मनुष्य की कल्पना है, नैसर्गिक नहीं। इसीलिये ईश्वरीय नियम के अनुसार इन सब की एक जाति होने के कारण सभी स्त्री पुरुषों में एक दूसरे के प्रति प्रेम की इच्छा पाई जाती है । एक जाति की लाखों स्त्रियों और