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जात-पांत का गोरखधंधा



दूसरी जाति के पुरुषों में गुप्त प्रेम है और इस प्रेम को गुप्त रखने का पूरा प्रयत्न किया जाता है। परन्तु कहावत है कि इश्क ( वह प्रेम जो कामवासना से हो) और मुश्क ( कस्तूरी ) छुपाने से नहीं छुपता है, प्रगट हो ही जाता है। इस प्रेम के उपहारस्वरूप सन्तानें भी होती रहती हैं और वे उसी जाते की समझी जाती हैं जो जाति उस स्त्री की हो ( यदि उस स्त्री का पति जीवित हो ) । गुप्त वीर्यदान में वीर्य की प्रधानता नहीं रहती, क्षेत्र की ही रहती है। मैं कुछ अनोखी बात नहीं लिख रहा हूंँ। प्रत्येक ग्राम और नगर में ये घटनायें नित्यप्रति होती रहती हैं। अगर कहीं कुछ झगड़ा होता है तो केवल लड्डू खाने या कुछ नकद् ऐंठने के लिये ही होता है।

यह गुप्त व्यभिचाररुपी अनर्थ क्यों उत्पन्न हुआ ? यह उसी सृष्टिनियमविरुद्ध धींगाधींगी का परिणाम है जिससे मनुष्य जाति को छोटी छोटी श्रेणियों में विभक्त कर दिया गया है और उनको मजबूर किया गया है कि वे उसी छोटे से समुदाय में अपना विवाह करें। इसी के फलस्वरूप बालविवाह, अनमेल विवाह, वृद्धविवाह आदि अनर्थ उत्पन्न हुये, जिनसे भारत इतना दुखी हो रहा है कि वर्णन करना कठिन है।

जिस समय जातियाँ बनाई गई ते उन के साथ यह कानून भी बना दिया गया कि एक जाति दूसरी जाति में विवाह न करे। क्योंकि कल्पित जातिभेद बनाना और विवाह