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आर्यग्रन्थों में जाति का लक्षण


का प्रतिबन्ध करना ईश्वरीय नियम के विरुद्ध था, अतः मनुष्यों ने उस की ज्यादा परवाह नहीं रखी और हमेशा उसको तोड़ते रहे और तोड़ते हैं। आज लाखों स्त्रियाँ एक जाति की दुसरी जाति के मनुष्यों की पत्नी बनी हुई हैं। इसको प्रचलित भाषा में घर में बैठना कहते हैं। इनसे जो सन्तानें होती हैं उन में यह विचित्रता रखी गई है कि न वीर्य को प्रधानता है न क्षेत्र की । वह सन्तान दस्सा, लोंङीवाल, खवासीना, गोला आदि नामों से पुकारी जाती है। अब पाठक विचारें कि यदि मनुष्यों में जातिभेद होता तो ऐसा संभव ही नहीं था । जातिभेद कल्पित है यथार्थ नहीं, यह बात इस दुसरी कसौटी से भी सिद्ध है।

(३) तीसरी कसौटीं यह है कि एक जाति की नकल दुसरी जाति नहीं कर सकती । अब मनुष्य को इस कसौटी पर भी परखना चाहिये ! एक अत्यन्त नीच जाति के लड़के को लेकर संस्कृत की शिक्षा दिलाइये। वह भी अच्छा पण्डित हो सकता है। गुरुकुलों में अछूत जातियों के बच्चे लेकर उन्हें विद्वान् बना डाला गया। महाराज बङौदा ने अछूतों की शिक्षा का प्रबन्ध कर के उन्हें इतना योग्य बना दिया है कि ब्राह्मण में और उनमें तमीज़ करना मुश्किल है। एक अरब देश का निवासी संस्कृत पढ़कर पण्डित हो सकता है। अकबर के समय में फैजी ने संस्कृत पढ़कर गीता, भागवत और