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जात-पांँत का गोरखधंधा


उपनिषदों का फारसी में उल्था किया था। इसी प्रकार एक भारतीय भी अरबी पढ़कर मौलवी हो सकता है। पहिले बहुत से होगये जिन्होंने अरबी-फारसी में किताबें तक बनाई है। आज भी मौलवी कालीचरणजी तथा पं० रामचन्द्रजी देहलवी अरबै के फाजिल मौजूद हैं। अंग्रेज़ों और जर्मन जाति के लोगों को लीजिये तो उनमें मेक्सम्युलर और ग्रीफिथ जैसे विद्वान् हो गये हैं। उन्होंने वेदों का भी अंग्रेज़ी में भाष्य कर डाला है, जो वेदों के ठेकेदार बनने वालों से न हो सकता। इस कसौटी पर भी मनुष्य एक जाति है।

(४) चौथी कसौटी यह है कि जाति बदल नहीं सकती। सो मनुष्यों की कल्पित जाति रोज़ बदलती है। उसका पहला प्रमाण तो यही है कि एक की १८००० होगई हैं। मनुष्य-गणना की रिपोर्टी से विदित है कि भारत में जाति बनाने का काम जारी है। हर मनुष्य-गणना में जातियाँ बढ़ जाती हैं। एक उच्च जाति का पुरुष यदि ईसाई या मुसलमान होजावे तो उसी समय वह जाति मिट जाती है। परन्तु वह अपना असली जाति, जो मनुष्यजाति है, नहीं बदल सकता । वह अध हिन्दू था तब भी मनुष्य था, मुसलमान होगया जब भी मनुष्य ही है। फिर ईसाई हो जायगा तब भी मनुष्य ही रहेगा । इस कसौटी पर भी मनुष्य की एक जाति हो सिद्ध होती है।

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