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जात-पाँत के पक्ष में कुछ युक्तियां


और गायत्री का उपदेश दिया । धोका देने को तो यह कथा ठीक है परन्तु विचारशील पुरुषों के आगे चल नहीं सकती। प्रत्युत इसी कथा से पंडितजी के सारे परिश्रम पर पानी फिर जाता है और अच्छी तरह कलई खुल जाती है।

कथा इस प्रकार हैं-

"बालक सत्यकाम ऋषि के आश्रम पर गया और प्रार्थना की कि मेरा उपनयन संस्कार किया जाये । ऋषि ने पूछा तुम्हारा गोत्र क्या है ? सत्यकाम ने कहा महाराज मुझे मालूम नहीं है, अपनी माता से जाकर पूछूंगा तब बता सकूंँग! ऋषि ने कहा अच्छा पूछकर आ । सत्यकाम अपनी माता के पास गया और पूछा कि माताजी मेरा गोत्र क्या हैं? जाबाली ने कहा मुझे नहीं मालूम । क्योंकि मेरा किसी के साथ विवाह नहीं हुआ । मैंने यौवन अवस्था ( जवानी ) में तुझे पाया है। सत्यकाम ने ऋषि के पास जाकर अपनी माता का बताया हुआ सब वृत्तान्त कह सुनाया। ऋषि ने सब हाल सुनकर कहा कि तूने सत्य को न छुपाया इसलिये तू ब्राह्मण है, क्योंकि सत्य को आचरण करना ब्राह्मण का लक्षण है।

इस कथा से साफ विदित है कि ऋषि ने सत्यकाम से पृछा कि तेरा गोत्र क्या है। अगर वे पहचान सक्ते थे तो देखते है। कह देते कि तू ब्राह्मण है। परन्तु पहचान नहीं सके और माता से पुछवाया । जब सत्यकाम ने सत्य कह दिया तो इस गुण