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जात-पांत का गोरखधंधा


को देख कर ऋषि ने व्यवस्था दे दी कि तू ब्राह्मण है। यहां यह भी बता देना ज़रूरी है कि ब्राह्मण कोई जाति नहीं है, वर्ण है। और वर्ण का संबंध गुण, कर्म, स्वभाव से है, जन्म से नहीं है। यदि जन्म से ब्राह्मण माने जाते तो बताओ क्या सत्यकाम व्राह्मण माना जा सकता था? कदापि नहीं। आजकल यदि कोई स्त्री इन पंडितजी के पास अपना तड़का लेजावे और कहे कि पंडितजी मेरा विवाह तो किसी के साथ नहीं हुवा परन्तु यह बेटा जवानी में जारकर्म से पैदा हुवा है तो पंडितजी बतावें कि वह किस जाति में उसे रक्खेंगे ? ब्राह्मण में या किसी और जाति में ? आजकल के नियम के अनुसार तो उस विचार का कहीं भी ठिकाना नहीं ।

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वर्णभेद ।

जन्म से जाति के पक्षपातियों में इस विषय की चर्चा करो तो वे कहते हैं कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ये चार जातिया आदि काल से ही चली आती हैं और सब जातियां जो इस समय १८००० पाई जाती हैं, इन्हीं चारों जातियों के अन्तर्गत हैं। यह विचार सर्वथा भ्रममूलक है। वेद, शास्त्र, तर्क, विवेक बुद्धि और सृष्टिनियम के विरुद्ध है। जिस दिन से इस झूठी कल्पना को जन्म देकर स्वार्थसिन्धुओं ने इस का प्रचार किया उसी दिन से भारत के सर्वनाश का सूत्रपात हुआ है।