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गीता का सिद्धान्त


इस प्रकार भिन्न गुण-कर्मों से ये चार वर्ण वने । इसलिये इन चार वर्षों का धर्म और यज्ञक्रिया करने का निषेध नहीं है। सब ही कर सकते हैं । इन चारों के लिये ब्राह्मी सरस्वती ( वेदविद्या ) एक सी है। ब्रह्मा ने इन्हें समान स्थिति में उत्पन्न किया है। इस पर भी यह लोभ के कारण अज्ञानी बने हैं।

भगवान श्री कृष्णचन्द्रजी महाराज ने "श्रीमद्भगवद्गीता में भी यही उपदेश दिया है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों वर्गों की सृष्टि गुण-कर्म के विभाग से है--

गीता का सिद्धान्त

चातुर्वण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।

( गीता अध्याय ४ । श्लो० १३ )

यदि जाति ( वर्ण ) जन्म से होती तो भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र यही उपदेश करते कि ब्राह्मण क्षत्रिय आदि जन्म से होते हैं। परन्तु भगवान ने साफ उपदेश दिया है कि चारों वर्ण गुण-कर्म के विभाग से बने हैं। परन्तु कितने शोक का स्थान है कि भारतवासी भगवान श्रीकृष्णचन्द्र पर अटल श्रद्धा और भक्ति रखते हुये भी भगवान् के उपदेश मानने को तैयार नहीं हैं। इसका कारण यही है कि हमारी सत्शास्त्रों पर केवल कथनमात्र श्रद्धा है। आचरण रीति-रिवाजों के अनुसार है इन के हम गुलाम हो चुके हैं, और हैं और न मालूम कबतक रहेंगे।