पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(२८)
जात-पांँत का गोरखधंधा

भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र महाराज साक्षात् अपने श्रीमुख से किये हुये उपदेश के पश्चात् ज़रूरत नहीं थी कि कोई और प्रमाण भी पेश किया जावे परन्तु यह दिखाने के लिये कि सारा साहित्य इसे विचार से भरा पड़ा है, थोड़े से प्रमाणों को कथन कर के मैं इस प्रकरण को समाप्त करूंगा।

भविष्यपुराण

भविष्यपुराण के पर्व १ अध्याय ४० श्लोक ८ में ऋषि ने स्वयं ब्रह्माजी से प्रश्न किया है कि क्या जन्म से ब्राहमण होता है या पढ़ने से या वेद या आत्मा या संस्कार या आचार या कर्म से ? इस प्रश्न का विस्तारपूर्वक ब्रह्माजी ने उत्तर दिया है। वह अध्याय ४० से प्रारम्भ होकर अध्याय ४४ में समाप्त हुआ है। ब्रह्माजी ने ऐसा युक्तियुक्त उत्तर दिया है कि उसके पङने से पूर्ण शांति होजाती है और इस विषय में किसी प्रकार का सन्देह शेष नहीं रहता । पुस्तक बढ़ जाने के भय से मैंने उसको नकल नहीं किया और पाठकों से अनुरोध करता हूँ कि वे कृपया भविष्यपुराण में ही उस प्रश्नोत्तर को पढ़के आनन्दलाभ करें । उनको पढ़ते ही विश्वास हो जावेगा कि मनुष्यमात्र एक जाति के हैं और गुण-कर्म से वह चार वर्णो में बंटे हुये हैं। आज जो भाँति भाँति की जातियां बनाई जाती हैं वे कल्पित और नितान्त झूठा हैं। इनमें कोई सार नहीं है।