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जात-पाँत की एक रोमाञ्च-जनक कथा

उपर्युक्त कल्पित तथा झूठे अधिकारों की रक्षा के लिये ही स्वार्थियों ने छुवाछूत नाम का किला बनाया और इस जात-पाँत और छुआछूत के गोरखधंधों में भारतवासियों के ऐसी बुरी तरह से उलझाया कि लाख प्रयत्न करने पर भी इससे निकलना कठिन हो रहा है। छुवाछूत के विषय पर एक स्वतंत्र पुस्तक लिखने का हमारा विचार है अतः यहां पर उसकी चर्चा करना व्यर्थ है ।

भारतनिवासी स्वभाव से ही श्रद्धालु होते हैं। श्रद्धा कोई बुरी बात नहीं प्रत्युत एक उत्तम गुण है । परन्तु वह अन्धी श्रद्धा न हो । यदि श्रद्धा के साथ विवेक-बुद्धि न हो तो वह अंध- श्रद्धा हो जाती है। आजकल भारत में अंधश्रद्धा का ही अटल राज्य है और विवेकबुद्धि को देशनिकाला दिया जा चुका है, प्रमाणस्वरूप एक घटना ही पर्याप्त हो ।

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जात-पाँत की एक रोमाञ्च-जनक कथा

मदरास प्रान्त में जाति-अभिमान और उससे उत्पन्न हुई छुवाछूत चरम सीमा को पहुंच चुकी हैं । सन् १९२३ में एक मुकद्दमा हुधा उसका हाल पढ़कर छाती फट जाती है और बहुत रोकने पर भी हाय निकल जाती है। जिस अर्यजाति ने समस्त संसार को ज्ञान दिया था आज वह कैसी मूर्ख हो