बीमारी का सब हाल लिख दिया और लिखा कि आप इस
चिट्ठी की पीठ पर “नुसखा” लिखदें और ५) इ० को नोट
भी चिट्ट पर रख दिया है। यह अपनी फ़ीस में ले लेवें। इतना
इन्तज़ाम कर के देवताजी डाँक्टर साहिब को बुलाने को चले ।
जब देवताज़ी डाक्टर साहिब के मकान के पास पहुंचे तो इस फिक्र ने अनि घेरा कि मैं डाक्टर साहिब से बात तो कर ही नहीं सकता, अब पुकारू कैसे ? सोचते सोचते इस बुद्धि के भंडार ने यह निर्णय किया कि केवल डाक्टर शब्द कहने में छूते नहीं लग सकती। उसका नाम नहीं लेना चाहिये और डाक्टर कहने में कुछ हानि नहीं । यह निश्चय कर के श्रीमान् बड़े ज़ोर से पुकारने लगे-डाक्टर ! डाक्टर ! डाक्टर! डाक्टर साहिब में उत्तर में कहा-कौन महाशय हैं ? डाक्टर के बोलते ही श्रीमान् चुप होगये । जब कुछ उत्तर न मिला तो डाक्टर साहिब भी चुप होगये । अब ब्राह्मण फिर चिल्लाने लगा--डाक्टर ! डाक्टर! डाक्टर साहिब ने फिर पूछा कि कौन है ? महाराज :फिर चुप होगये । तब डाक्टर साहिब समझ गये कि कोई ब्राह्मण है जो मुझ से बात नहीं कर सकता । डाक्टर साहिब नीचे आये तो देवताजी उसी वक्त ४८ फिट दूर चले गये और इधर उधर से तलाश कर के एक ईट अपने सामने रखली और उस ईट के सम्बोधन कर के