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जात-पांँत का गोरखधंधा

प्रश्न-वैल वेङ्कटास्वामी ! यदि यह डाक्टर ईसाई या मुसलमान हो जावे और फिर तुम्हारे तालाब में स्नान करे तो तालाब अशुद्ध होगा ?

उत्तर- नहीं होगा, मुसलमान और ईसाई होजावे फिर म्हावे तो कुछ हर्ज नहीं है।

उपर्युक्त प्रश्नोत्तर के पश्चात् बैरिस्टर ने डाक्टर को सम्वोधन कर कहा-डाक्टर साहब ! क्या आप उस हिन्दू- धर्म में रहना पसन्द करते हैं जिस में एक मनुष्य को, जो अपनी योग्यता के कारण से डाक्टर है, केवल इसलिये कि उसका जन्म एक कल्पित नीच जाति में हुवा है, बुरे से बुरे पशु- पक्षी से भी बुरा समझा जाता हो ? मेरे साथ गिरजा में चलो और ईसाई-धर्म ग्रहण कर के मनुष्य बन जाओ फिर उसी तालाब में न्हाओ, जिसकी पाल पर से निकलने पद तुम्हारे ऊपर तालाब भ्रष्ट करने की यह नालिश हुई है।

बात सच्ची थी। डाक्टर की समझ में आगई। यह बैरिस्टर के साथ गिरजा में गया और ईसाई होगया । ईसाई होते ही वह पवित्र होगया और संघ अछूतपन निकल गया।

सूचना-घटना सत्य है, नीति के विचार से नाम बदल दिये गये हैं।