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जात-पाँत की एक रोमाञ्च-जनक कथा


निश्चय किया गया कि मेरा कर्म शास्त्र विरुद्ध है और मुझे सदा । के लिये बिरादरी से निकाल दिया गया और मेरे साथ सब सामाजिक संबन्ध विछिन्न कर दिये गए,यहांतक कि उक्त विवाह से थोड़ा ही समय पीछे मेरी माता का देहान्त हो गया और उन- की अर्थी श्मशान पहुंचाने के लिये तय्यार कीगई, ठीक उसी समय मालवीय जातिने पं० मालवीयज़ी के मकान पर एक सभा की और यह व्यवस्था दी गई कि इस जाति का जो मनुष्य मेरी माता की अन्त्येष्टि क्रिया में सम्मिलित होगा वह उक्त पवित्र बिरादरी में से बहिष्कृत कर दिया जायगा। यह प्रस्ताव बड़े चाव से स्वीकार किया गया और उस समय किसी मनुष्य ने मुझ से मिलने का साहस न किया, लाश २४ घण्टे पड़ी रहीं, मुझे अपने काने और बहरे मित्रों पर भरोसा था, वह लोग मुझे बहुत प्यार करते थे उनकी सहायता से मैं अपनी माता की लाश ठिकाने लगासका।

मालवीय जाति के अत्याचार का एक और नमूना देखिये- मेरी स्त्री सख्त बीमार थी और मरणासन्न थी उसकी यह प्रबल इच्छा थी कि वह अपनी सबसे बड़ी लड़की को देखे, जिसको विवाह पं० मदनमोहन मालवीयजी के पुत्र से हुआ था, मालवी- यजी से अपील की गई कि वह मेरी लड़की को अपनी माता से मिलने के लिये भेज दें, परन्तु इसकी कोई पर्वाह न की गई ।