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जात-पाँत का गोरखधंधा

वीयजी को चैलेंज देने की धृष्टता तो नहीं कर सकता, परन्तु अपने और उनके समर्थकों से सविनय निवेदन करूंगा कि यदि मैंने कोई बात अयथार्थ लिखी हो तो वह खण्डन करें । यदि ऐसा नहीं है तो क्या पं० मदनमोहन मालवीयजी और दूसरे बड़े हिन्दू नेता बतलाएंगे कि अब हिन्दू जाति में मेरी क्या स्थिति है और मेरे क्या कर्तव्य हैं ?

इस पत्र पर किसी टीका टिप्पणी की आवश्यकता नहीं, इसने विचारशील आर्य (हिन्दू) जनता में हलचल डाल दी है, डा० लक्ष्मीकान्त जैसे सुप्रतिष्ठित व्यक्ति के साथ हमारी बिरा- दरियां कहतक अत्याचार कर सकती हैं, इसका ज्वलन्त उदाहरण यह पत्र है, इस घटना के साथ पं० मदनमोहन मालवीयजी का जो सम्बन्ध है उसे पढ़कर कौन जाति-हितैषी रक्त के आँसू न बहाएगा ?

वर्तमान जात-पाँत के अत्याचारों की एक और करुण- कथा पिछले दिनों बम्बई से आई थी, जहां इन्दिराबाई तांबे नामक हिन्दू रमणी ने आत्महत्या तक करली । क्यों ? इस लिये कि हमारी जाति ने उसे उसके हृदयेश्वर से विवाह न करने दिया, इन्दिराबाई बम्बई के एक अस्पताल में नर्स का काम करती थी, ३ वर्ष पहले उसकी देशपाण्डे नामक एक युवक से प्रीति होगई थी, दोनों परस्पर विवाह-सूत्र में बँधना चाहते थे, परन्तु नव युवक के पिता ने इस पर आपत्ति की