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जाति-भेद के कुछ भयंकर परिणाम

( ९ ) बहुत दिनों तक छोटे समुदाय में विवाह-सम्बन्ध होते रहने से बुद्धिहीनता उत्पन्न होगई है।

(१०) स्वराज्य प्राप्ति के रास्ते में सब से बड़ा कंटक यही जात-पाँत का अङंगा और अछूतपन है ।

(११) विधर्मियों के अत्याचार जो आठौ वर्ष से अर्यजाति सहन कर रही है, जातिभेद का प्रसाद है ।

(१२) विधमयों की वृद्धि और हिन्दुओं के हास का कारण यही जाति-भेद है।

(१३) जातिभेद ने ही भारतवर्ष से सब सत्य विद्याओं को देशनिकाल दिया और अन्त में वे लोग भी, जो विद्या के ठेकेदार बन बैठे थे, महामूर्ख होगये और सब बुराइयों के प्रचार के कारण बने ।

(१४) शुद्धि और संगठन में यही जातिभेद रोड़ा बन रहा है।

(१५) जातिभेद ने ही भारत में व्यापार और कारीगरी का सर्वनाश कर डाला और देश कंगाल और आलसी होगया ।

(१६) राजाओं, महाराजाओं, सेठ, साहूकारों में जाति-पति के रोग के कारण विवाह समय में चुनाव का क्षेत्र