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जात-पाँत का गोरखधंधा

बहुत सीमित रहता है, अतः कभी २ वहुत समीप के सम्बन्ध हो जाते हैं, इससे रक्त का यथेष्ट परिवर्तन नहीं होता, परिणामरूप ऐसे लोग प्रायः निःसन्तान रह जाते हैं, अथवा बड़े यल करने पर और बहुतसी आयु बीत जाने पर उनके सन्तान होती है, यही कारण है कि उनके देहावसान पर प्रायः छोटे २ बच्चे गद्दी के लिये रह जाते हैं और फिर बहुतसे झगड़े उठ खड़े होते हैं, जाति पाँतियों के जटिल जाल को एक उदाहरण तो बहुत ही भयंकर है, एक राजघराने की कन्या ३४ वर्ष की आयु तक इसलिये बिठाई गई, क्योंकि किसी बड़े राजवंश से बाहर उसका विवाह नहीं हो सकता था, आखिर एक १४, १५ वर्ष के बालक से उसका विवाह हुआ, यई कैसा अनमेल कार्य है, इसे पाठक खूब समझ सकते हैं।

प्रिय मित्रो ! कहांतक गिनाऊं। वह कौनसा दुःख है जो जाति- भेद की कुप्रथा के कारण भारत को सहन नहीं करना पड़ा। मेरा आत्मिक विश्वास है कि तमाम खराबियों की जड़ जाति- भेद है।