पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१६५

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कलेक्टर किशोर चन्द

[एक मनोरञ्जक कहानी]

किशोर और कमला बचपन से इकट्टे पले-पुसे, इकट्टे खेले- कूदे और अब इकट्ठ पढ़-लिख रहे थे । एक तो घर पड़ोस में था, फिर कमला की माता और किशोर की माता दोनों सहेलियाँ थीं । दोनों में सगी बहनों से भी अधिक प्रेम था। इसलिये दोनों बच्चों में परस्पर प्रेम होना स्वाभाविक ही था । दिनों के बाद महीने और महीनों के बाद वर्ष बीतते गये, और वे दोनों अब बचपन की घाटी से निकल कर युवावस्था के साम्राज्य में प्रवेश कर चुके हैं। किशोर की आयु बीस और कमला की सत्रह वर्ष हो चुकी है। दोनों बी, ए. की परीक्षा की तैयारी में संलग्न हैं । इसी से रात के ग्यारह-ग्यारह बजे तक कमला किशोर के कमरे में ही पढ़ती-लिखती रहती, और फिर उसकी माता के कमरे में जाकर सो रहती है।

बुद्धिमानों का कथन है कि युवती स्त्री के पास एकान्त में युवा पुरुष को अधिक समय तक न रहना चाहिये, चाहे यह अपनी सम्बन्धिनी ही क्यों न हो। न जाने हृदय में छिपा हुआ दानव किस समय जाग्रत हो जाय । किन्तु आज कल बहुधा व्यक्ति इन बातों की परवाह नहीं करते, और अब इसका कुप- रिणाम आगे आता है, तब आश्चर्य-चकित रह जाते हैं। कहीं तो स्कूल-कालेजों के समीप जीवित नवजात शिशु थैले में पङा पाया जाता है, और कहीं किसी शौचालय के समीप किसी