पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ३ )

बच्चें का मृत शरीर पड़ा हुआ मिलता हैं। बाल-हत्या करने वाली लड़की और उसके माता-पिता कैद किये जाते हैं, मुकदमें चलते हैं, सारे परिवार पर आपत्ति आ जाती है, इत्यादि । यह अब नित्थ-प्रति साधारण बातें हो रही हैं और इनका प्रारम्भ उसी ढंग से होता है, जिसका वर्णन ऊपर किया जा चुका है। अतएव यही हुआ जो होना था।

रात के ग्यारह बजे होंगे । शीतकाज की रातें, घर के सब लोग खा-पीकर सो चुके थे। कमरे का द्वार भीतर से बन्द था। किशोर के ऊपर विकार का दानव सवार हुआ। उसने कमला पर हाथ फैलाना प्रारम्भ कर दिया । कमला उसका हाथ अलग हटाती हुई बोली---प्यारे किशोर ! पागल न बनो। मन को बस में बाँधो । यद्यपि मैं अपना तन-मन तुम्हारे अर्पण कर चुकी हैं, किन्तु फिर भी जब तक हमारे विवाह की प्रथा पूरी न हो जाय तब तक हमें अपने आपको बची कर रखना ही होगा । और, फिर, मैं निर्धन माता-पिता की पुत्री हैं और तुम धनी परिवार के हो । मैं भाईबन्द बिरादरी की हूँ, और तुम अमिल जाति के हो । सम्भव है तुम्हारे पिता जी यह विवाह न होने हैं, क्योंकि वे हमें अपने से नीच सम- झते हैं। वे हमारे परिवार की लड़कियों ले तो लेते हैं, परन्तु अपनी लड़कियां हमारे परिवार में नहीं देते । और लेते भी तब हैं जब उन्हें सहस्रों का दहेज़ मिलता है। अतः तुम मुझसे अलग रहो। कहीं ऐसा न हो कि मैं अपना सतीत्व लुटा बैठूँ और फिर तुम्हारे साथ विवाह न हो सके, और मेरा जीवन नष्ट जाय ।

किशोर-अच्छा, तो मानो तुम्हें संदेह है कि मैं तुम्हारे