पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ६ )


बताइये । यह कहकर उसने उस रात की सारी घटना सच्चाई के साथ पिता से कह सुनायी । आज कमला के घर से निकले जाने की बात भी उसने पिता से कह दी और प्रार्थना की कि हम दोनों का विवाह कर दीजिये ।

दीवान रत्नचंद -यह विवाह कदापि न हो सकेगा। तुम मेरे इकलौते बेटे हो । मैं तुम्हारा विवाह ऐसे घर में करना चाहता हूँ ओ मेरे ही समान धनी-मानी हो । कमला के माता- पिता एक तो निर्धन हैं, और फिर बिरादरी में भी नीचे हैं।

किशोर-पिता जी, यथार्थ में तो आमिल और भाई-बंद एक ही हैं। हमारे पुरखे प्रारम्भ से ही नौकरी करते आये हैं, और आमिल कहलाने लगे हैं। उनके पुरखे व्यापारी थे, प्यार से एक दूसरे को भाई कहते थे । इसलिये वे 'भाई-बन्द' कह- लाये। फिर वह किस बात में हम से नीचे हैं? हमारे पुरखे मीरों की बादशाही मैं दीवान थे, इसी लिये अब तक हम लोग दीवान कहलाने में अभिमान समझते हैं, यद्यपि अब हम में से एक भी किमो रियासत का दीवान नहीं है। जब हम मीरों के नौकर थे, तो उनकी प्रसन्न करने के लिये तुर्की टोपी पहनते थे। जब से अँगरेज़ों के नौकर हुए हैं तब से हमने कोट, पतलून और हैट पहनना प्रारम्भ कर दिया है और नकली साहब बन बैठे हैं। हम लोग तो प्रारम्भ से ही गुलाम हैं, परन्तु भाई- बन्द स्वतन्त्र हैं। उन्होंने पहनावा नहीं बदला | वही हिन्दुस्तानी धोती, वही पगड़ी और वही कोट । अब रही धन की बात । सो हम लोगों को नियमित वेतन मिलता है, जिससे हमारा आव- श्यकताएँ पूरी होनी हैं। परन्तु वे लोग लाखों का व्यापार करते हैं, लाखों कमाते हैं। अशिष्टता क्षमा हो , उममें से