पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१७१

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में इसी समय । और खबरदार,जो कभी तूने मेरे घर में पैर रक्खा।

‌किशोर ने नम्रता से पूछा- क्या यह भापका अन्तिम निर्णय है ?

रत्चनन्द ने कहा--हाँ, अन्तिम निर्णय है। किशोर ने झुक कर पिता को प्रणाम किया और चुपचाप घर से निकल आया।

कमला यह सब बातें सुन रही थी । किशोर को आते देख कर खड़ी हो गयी । दोनों चुपचाप घर से निकले चले । दुर्भाग्य से किशोर की माता उस समय घर पर नहीं थीं। वह कराची गयी हुई थीं। नहीं तो शायद ऐसा न होने देतीं । परन्तु होनहार तो होकर ही रहती है।

घर से निकल कर दोनों ने सलाह की कि सबसे पहले आर्य- समाज-मंदिर में चलकर विवाह कर लेना चाहिये और फिर बम्बई चले चलेंगे। लेकिन दोनों की जेबें खाली थीं। कमला ने अपनी चूङिया उतार कर किशोर की ओर बढ़ायीं और फिर मुस्कराती हुई बोली-दीन दुखिया पुजारिन की पहली भेट श्री चरणों में स्वीकार हो ।

किशोर को बहुत दुःख हुआ। वह नहीं चाहता था कि अपनी कमला के हाथों की चूड़ियाँ उसे बेचनी पड़े। किन्तु करे भी तो क्या करे ? वह उसी समय हैदराबाद के सुप्रसिद्ध शाही बाजार में पहुंचा, और एक सराफ के यहां दो सौ रुपये में यूरियां बेच पाया। फिर दोनों आर्य-समाज-मंदिर पहुंचे। वह विवाह के विधि-विधान में पच्चीस रुपये खर्च होगयें । बाकी बचे पौने दो सौ। जब स्टेशन पहुँच कर किशोर बम्बई के टिकट लेने लगा तो कमला ने कहा-"रूपया बिलकुल ही कम है।