पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१७२

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इसलिय आप तीसरे दर्जे के टिकट लीजिये ।” किशोर ने उत्तर दिया कि गाड़ी में बेहद भीड़ होती हैं, पर तुम गर्भवती हो । तुम्हें मतली और के की भी शिकायत है। तीसरे दर्जे में तो तुम्हें पल भर भी विश्राम करने को न मिलेगा। इसलिये हम सेकेण्ड क्लास में ही चलेंगे ।

कमला -यदि तीसरे दर्जे में भीड़ होती है तो इंटर का टिकट ले लीजिये । बेकार को सैकेण्डे का टिकट क्यों लेते हैं ?

किशोर-मेरी रानी को कदाचित यह विदित नहीं कि दर केवल मारवाड़ तक है, उसके बाद केवल फर्स्ट, सैकण्ड और थर्ड क्लास ही बाकी रह जाते हैं । इसलिये हमें सैकेंड के ही टिकट लेने पड़गे । परन्तु तुम चिन्ता क्यों करती हो ? बम्बई पहुँचने और एक-दो सप्ताह वह ठहरने भर को इतना रुपया पर्याप्त है। उसके बाद भगवान कोई न कोई धंधा लग ही देंगे । और कुछ न हो सका, तो मेहनत मजदूरी कर लेंगे ।

इसके बाद किशोर ने बम्बई सेण्ट्रल स्टेशन के दो टिकट खरीद लिये, और दोनों अन्दर जाकर सेकेण्ड क्लास के डिब्बे में बैठ गये। वह बिलकुवा खाता था । थोङी देर में एक अँगरेज़ वृध्दा भी उसी डिब्बे में आ वैठी। ५ बजकर २० मिनट पर गाड़ी ने हैदराबाद (सिंध) से प्रस्थान किया।

डिब्बे में यद्यपि छः सीटें थीं, किन्तु सवारियों केवल तीन थीं । यह तीसरी सवारी साठ वर्षीय महिला श्रीमती कूपर थीं । उनके पति मि० कूपर बहुत बड़े धनधान व्यक्ति हैं। अब इस दम्पति ने निश्चय किया है कि शेष जीवन अपनी मातृभूमि इंग्लैंड में चलकर बिताएँगे । श्रीमती कूपर को उन्होंने पहले भेज दिया है कि वह बम्बई पहुँच कर वन प्रबन्ध करे । वह