पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१७३

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रूपय भी दुकान का माल बेचकर बम्बई में उनसे भी मिलेंगे।

गाड़ी स्टेशन से काफी दूर पहुंच चुकी हैं। कमला और किशोर खिड़की से गर्दन निकाल कर हैदराबाद नगर की ओर देख रहे हैं। किशोर तो अपने मन में कह रहा हैं---

दरो-दीवार पै हसरत से नज़र करते हैं,
खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं ।

परन्तु कमला घृणा-पूर्ण दृष्टि से उधर देख रही हैं। कुछ देर में नगर दृष्टि में ओझल होगया और दोनों अपने अपने स्थान पर जा बैठ। कमला ने अत्यन्त करुणापूर्ण स्वर में गाना प्रारम्भ किया---

उस देश में मुझे को ले चल प्रभु !
उस देश में मुझे ले चल-
जहाँ जात-पाँत का ज़हर न हो,
जहां ऊँच-नीच का क़हर न हो,
भाई भाई से बैर न हो,
उस देश में मुझ को ले चल----
इस देश में प्रीत की रीत नहीं,
यहाँ अपनों में भी प्रीत नहीं,
जिस कौम का कोमी गीत नहीं
उस कौम की होगी जीत नहीं,
उस देश में मुझको ले चल प्रभु !

किशोर इससे अधिक न सुन सका। देश की निन्दा वह कैसे सुन सकता था ? क्रोधित होकर बोल-कमला ! तुमने बहुत बड़ा पाप किया है। जिस देश में जन्म लिया, जिसका दिया हुआ अन्न-जल खाकर तुम इतनी बड़ी हुई, उसी को