पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१७४

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बुरा बतला रही हो।

कमला-प्राणनाथ ! मेरा देश तो स्वर्ग से भी बढ़कर है। परन्तु देश के निवासी पूरे राक्षस हैं, राक्षस । क्या हमारा- तुम्हारा अपराध इतना भारी था कि हमें घर से बाहर निकाल दिया जाता ? क्या मेरा और तुम्हार परिवार एक ही हिन्दू जाति के भीतर नहीं है? क्या ऊँच-नीच और अमीरी-गरीबी में अपने विवाह में बिघ्न नहीं डाला ? यह सब कुछ होते हुए भी मैं इस देश के कैसे अच्छा कहूँ ? हाँ, आप को प्रसन्न करने के लिये यह दासी नरक को भी स्वर्ग कहने को तैयार हैं। मुझे अनुमान तक न था कि इस गीत को सुनकर तुम को दुःख होग। | आप मुझे क्षमा करदें। इसके बाद दोनों अपने अपने स्थान पर लौट गये ।।

रात के नौ बजे गाडी छाड़ नामक स्टेशन से छूटी। सब सोने की तैयारी कर रहे थे। जो यात्री जहाँ था-बैठा हो या लेटा--वहीं ऊँध रहा था । श्रीमती कूपर और कमला तो बेसुध सो रही थीं, किन्तु किशोर आंखें बन्द किये अपने भावी जीवन पर चिन्तन कर रहा था। अचानक उसने खिड़की के रास्ते किसी को भीतर कूदते हुए देखा । वह उसे देखकर दंग रह गया ! एक ग्राण्ढील नवयुवक । पगड़ी से अपना मुँह आधा ढँक रखा था । उसके एक हाथ में विस्तौल था, और दूसरे से श्रीमती कूपर का अटैची केस, जो उन्होने अपने सिर के नीचे रख छोड़ा था, खींचने को तैयार था । डाकू की पीठ किशोर की ओर थी, और वह समझ रहा था कि ये सब सोये हुए हैं। इसलिये उधर से वह बिलकुल निश्चिन्त था । किशोर ने सिंह के समान झपट क डाकू के पिस्तौल वाले हाथ