पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१७६

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महमूद मुकरानी! मशहूर डाकू, को जेल से भागा हुआ है, जिसका चित्र "सिंध-आवजर्वर" में निकला था! बदमाश ! तुम इधर क्यों आ मरा था ?

डाकू ने उत्तर दिया-अरी बुढ़िया ! बड़ी ही भाग्य- शाली है, नहीं तो एक लाख के जवाहरात जो तेरी इस सन्दू- कची में बन्द हैं, मुझ से कभी न बचते । खेद है कि इस छोकरे ने सारा काम बिगाड़ दिया। नहीं तो जब तक न तुम होती और न तुम्हारे यह जवाहरात ।

इतनी देर में कमला ने जंजीर खींच कर गाड़ी खड़ी कर ली थी। पुलिस के सिपाही और गार्ड ने आकर सब बातों की पूछताछ करनी शुरू की। किशोर, कमला और श्रीमती कूपर के बयान लिख लिये गये। डाकू को हथकड़ी लगाकर पुलिस ने उसे अपने अधिकार में कर लिया। किशोर, कमला और श्रीमती कूपर दूसरे डिब्बे में जो बैठे। गाड़ी फिर चल दी। अब तो बुढ़िया किशोर पर बड़ी ही प्रसन्न थी। बार-बार उसे धन्यवाद देती हुई बोली-मिस्टर किशोर, आज यदि आप न होते तो मेरी हत्या हो गयी होती। भाप ने बड़ी वीरता की कि अपने प्राण संकट में डाल कर मेरे प्राण बचाये । मैं तुम दोनों की बहुत ही कृतज्ञ हूँ। अच्छा, अब यह बसलाओ कि तुम दोनों बम्बई किस लिये जा रहे हो ? जान पड़ता है तुम दोनों बहुत जल्दी में घर से निकले हो। क्योंकि तुम्हारे पास न तो कुछ सामान है, और न विस्तर । मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है । यदि कष्ट न हो तो मुझे सब वृत्तान्त कह सुनाओ। किशोर ने आदि से अन्त तक सारा वृत्तान्त सच-सच कह सुनाया । वह बोला- किशोर मेरा नाम है,और 'शहानी' उपनाम । इसलिये आप