पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१७८

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श्रीमती कूपर यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुई। उन्होंने दोनों को आशीर्वाद दिया। वह फिर बोली-अच्छा, अब तुम लोग मुझ से अंगरेजी में वार्तालाप मत किया करो। भारतीय बालकों की माता को हिन्दी भाषा अवश्य आनी चाहिये । मुझे हिन्दी अच्छी तरह आती है। इसलिये अब हम लोग आपस में इसी भाषा में बात-चीत किया करेंगे। तुम्हारे पिता (श्रीयुत कूपर ) तो तुम्हारी ही तरह साफ़ बोल सकते हैं। मैं भी थोड़े दिन के अभ्यास के बाद भली भांति बोलने लगूँगी।

समय बिताने के लिये श्रीमती कूपर ने बात-चीत का प्रसंग चालू रक्खा । वे बोली- हिन्दू जाति पिछले समय में तो अवश्य ही वीर और शूर थी, परन्तु पर तो एक सहस्त्र हिन्दुओं में मुश्किल से एक दो ऐसे मिलेंगे ओ तुम्हारी तरह निडर हों। और स्त्रियों में तो लाखों में एक दो कमला जैसी निर्भय निकलेगी।

किशोर---माता जी, आपके प्रश्न का उत्तर एक कवि ने अत्यन्त सुन्दरता के साथ दिया है। परन्तु आप कविता समझा न सकेगी।

श्रीमती कूपर-मैं अवश्य समझ सकूँगी। तुम थोड़ा अच्छी तरह बोलना।

'बहुत अच्छा', कहकर किशोर ने अति मधुर स्वर में यह गीत गाना प्रारम्भ कर दिया-

कौन कहता है कि हिन्दू ! अब न तू बलवान है ?
कौन कहता है कि अब तेरे न तन में प्राण है?
कौन कहता है कि हिन्दू ! हो रहा निस्तेज तू ?
कौन कह सकता है कि वीरों की न तु सन्तान है?