पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१८२

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धागे को तोड़ तोड़ कर सारी रस्सी को तोड़ देगा। ठीक इसी तरह हमारी जाति का विभाग नम्बर दो हो चुका है। प्राह्मणों की अनेक उपजातियां बन चुकी हैं। जैसे--सार- स्वत, गौड़, कनौजिया मादि। फिर इनमें से भागे प्रत्येक की सैकड़ों उपजातियां हैं । जैसे सारस्वत ब्राह्मणों की-देवगण, कालिये, रत्न आदि । इसी तरह क्षत्रिय जाति अनेक उपभागों में विभक्त हो गई है। जमे-राजपूत, गोरखे, मराठे, खत्री इत्यादि । फिर इनमें से प्रत्येक जाति की सैकड़ों-सहस्रो उपजातियां हैं । जैसे, खत्री जाति की उपजातियों-कपूर, खन्ना, सहगल आदि। अरोड़ा एक उपजाति है, और उसकी उपजातियां भानना, तनेजा, गीदड़ आदि हैं । इसी तरह वैश्य और शूद्र जातियों को समझ लीजिये । इस प्रकार प्रत्येक विभाग में लगभग ३४० व्यक्ति पाते हैं। यदि यह मान लिया जाय कि जाति दम सहन भागों में विभक्त हुई है तो प्रत्येक बिरादरी में ३४० व्यक्ति माते हैं। क्या यह थोड़े से मनुष्य किसी बड़ी जाति का सामना कर सकते? या कोई बड़ा काम करके दिखला सकते हैं ! कदापि नहीं। वरन् इनके लिये तो अपना अस्तित्व स्थिर रखना भी कठिन हो जायगा।

श्रीमती कपूर-तो क्या यह लोग एक दूसरे के हाथ का खा पी लेते हैं ?

किशोर-आपके प्रश्न का उत्तर हा भी, और नहीं भी।

श्रीमती कूपर-भला यह क्योंकर सम्भव है ?

किशोर-माताजी, इस संसार में कुछ भी असम्भव नहीं, सब कुछ हो सकता है। भारतवर्ष बहुत बड़ा देश है और