के रीति-रिवाज भिन्न भिन्न हैं। उदाहरण के लिये, पंजाब
में ब्राह्मण लोग खत्री के यहाँ रोटी तो खा लेते हैं, किन्तु
बेटी-बेटे का विवाह अपनी ही जाति में करते हैं। अपनी
जाति का लड़का भले ही लंगड़ा, काना, गंजा अथवा असु-
न्दर और अशिक्षित ही क्यों न हो, फिर भी वे उसी के साथ
अपनी लड़की का विवाह सम्बन्ध कर देंगे, किन्तु अन्य जाति
सुन्दर, स्वस्थ
और सुशिक्षित लड़का भी उन्हें अच्छा
नहीं लगता । यह अवस्था ब्राह्मण से लेकर
शूद्र तक
सभी जातियों की है। फिर प्रत्येक जाति में ऊँच-नीच का
विचार विद्यमान है। प्रत्येक खत्री अपने आप को अरोड़ा
जाति से ऊँचा समझता है । फिर यदि उसकी उपजाति
कपूर है, तो वह खन्ना से अपने आप को ऊंचा समझता
है। उधर खन्ना अपने आपको ऊँचा तथा औरों को नीचा
समझता । यह ऊँच-नीच का कुविचार ब्राह्मण से लेकर
शूद्र तक प्रत्येक जाति में मौजूद है । इस तरह के कूवि-
चारों ने हमें आपस में एक दूसरे से पृथक कर रक्खा
है। पंजाब में तो ब्राह्यमण और खत्री एक दूसरे के हाथ का
खा लेते हैं, किन्तु युक्त प्रान्त में इतना भी नहीं । वहाँ तो एक
ही जाति वाले एक दूसरे के हाथ का नहीं खाते । उन
के विषय में कहावत प्रसिद्ध है-'आठ कनौजिये, नौ चूल्हे' ।
हमारे सुयोग्य नेता पं° मदनमोहन मालवीय की भी
इसी कोटि के ब्राह्मणों में से हैं । वह अपनी जाति वाले
ब्राह्मण के हाथ का खायेंगे, किसी अन्य जाति के ब्राह्मण का,
चाहे यह कितना ही शुद्ध और सदाचारी क्यों न हो, खाना तो
दूर रहा, पानी तक न पियेंगे । जब वह इतने बड़े नेता
होकर भी अपने कट्टर विचार नहीं बदल सकते, तो फिर
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