पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१८५

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श्रीमती कूपर-किन्तु उसने अपनी जाति को छोड़कर उस भयानक जाति में क्यों विवाह किया था ?

किशोर-~-यह संयोग की बात थी, अन्यथा भीमसेन उसे हूँढ़ने नहीं गया था। बात यह थी कि माता-समेत पाण्डव उन दिनों बनवास का जीवन व्यतीत कर रहे थे। एक दिन उन्हें एक जंगल में रात बितानी पड़ी। भीमसेन को पहरे पर बिठा- कर चारों भाई माता-समेत सो रहे । आधी रात के समय हिडम्बा माखेट की खोज में चली कि कहीं भला मटका यात्री मिल जाय तो पेट भर । इधर से उसे मानव-आ रही थी। इसलिये वह इधर चली गयी। भीमसेन ने देखा कि कोई आ रहा है, उसे दूर ही रोकना चाहिये, जिससे कि युद्ध करने से सोने वालों की निद्रा-भंग न हो जाय । अस्तु, वह उठा और पचास पग आगे बढ़कर उसने हिडिम्बा का स्वागत किया। दोनों में मल्ल-युद्ध हुआ, जिसमें हिडिम्म हार गयी । साथ ही अपना हृदय भी दे बैठी। उसने विवाह की प्रार्थना की, जिसे भीमसेन ने स्वीकार कर लिया। उसी समय अग्नि प्रज्व- लित कर के दोनों ने उसकी परिक्रमा की और विवाह हो गया। ऐसे विवाह को गन्धर्व विवाह कहते हैं। यह भी उन दिनों प्रचलित था। इसमें न किसी तीसरे मनुष्य की आवश्यकता होती है और न एक पाई खर्च पड़ता है। अस्तु, चुपचाप यह विवाह-संस्कार सम्पन्न हो गया। किसी की खबर तक न हुई। घर के शेष मनुष्यों को भी उस समय खबर मिली जब नई बहू ने अपने कुल्हाड़े जैसे हाथों से युधिष्ठिर और माता कुन्ती के पैर छुए ।

अब ब्राह्मण लड़के से क्षत्रिय लड़की के विवाह का उदाहरण लीजिये । पाण्डवों का भाई अर्जुन जब द्रौपदी के स्वयम्बर में सम्मिलित हुआ तब वह ब्राह्मण के वेष में था । उसके