पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१८८

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ही इसे तोड़ने के लिये हुआ है। वह भारी यत्न कर रहा है। मंडल की एक मासिक पत्र भी प्रकाशित होता है, जिसका नाम क्रान्ति है। काम तो कई वर्षों से हो रहा है, किन्तु मन्दगति से । मंडल के पास रुपये की कभी है, अन्यथा ‘क्रान्ति' जैसे अनेक पत्रों की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त दो-चार साप्ताहिक प्रश्न भी होने चाहिएँ, जो कि नित नई चोट लगाकर इस लोहिया दीवार को चकनाचूर कर दें । किन्तु रुपये की कमी के कारण सब काम अधूरे पड़े हैं।

इस प्रकार वार्तालाप में यह यात्रा समाप्त हुई, और सब लोग बम्बई पहुँचे । यह रायल होटल में ठहर कर थे मिस्टर कूपर की प्रतीक्षा करने लगे । तीन दिन बाद वे भी जलमार्ग से आ गये। जब उन्हें श्रीमती कूपर के मुँह से सब बातें विदित हुई तो वे बहुत ही प्रसन्न हुए । किशोर और कमला ने उन्हें प्रणाम किया, जिसपर उन्होने उनको आर्शीवाद दिया । अगले दिन उस सारे परिवार ने जहाज़ द्वारा लण्डन के लिये प्रस्थान कर दिया ।

लंडन पहुँच कर एक सप्ताह तक मिस्टर कूपर ने उन्हें खूब भ्रमण कराया, और अपने मित्र-सम्बन्धियों से उन का परिचय कराया । तत्पश्चात् एक दिन वे किशोर से बोले---बेटा, सम्पति की तो कोई कमी नहीं, किन्त मनुष्य को हाथ पर हाथ धर कर न बैठ रहना चाहिए। सदा विद्दा और कला सीख कर अपनी सम्पत्ति की वृद्धि करते रहना चाहिये । खूब धन कमाओ । उसे चाहे आप रक्खो और चाहे दान-पुण्य में लगाओ । अब यह बताओ कि तुम क्या सीखना चाहते हो ?

किशोर---अपकी बहुमूल्य शिक्षाओं के लिये मैं आपका