पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१९०

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ठहरे जिसमें जाते समय ठहरे थे। धो-चार दिन की सैर के बाद मैं पूना पहुँचे, और वहां के कलेक्टर से चार्ज ले लिया।

तीन वर्ष बीत चुके हैं। इस बीच में किशोर ने वह नाम कमाया कि आजतक किसी कलेक्टर ने न कमाया था । यहां ही उनके घर दूसरा पुत्र उत्पन्न हुआ । उस का नाम रमेश रक्खा गया । उसके बाद उनके इच्छानुसार उन्हें सिन्ध में बदल कर हैदराबाद ज़िले का कलेक्टर नियत कर दिया गया ।

जब सिंध के समाचार-पत्रों में यह सम्वाद प्रकाशित हुआ कि मि० शहानी हैदराबाद के कत क्टर होकर आ रहे हैं तो किशोर के पिता दीवान रत्नचन्द को महान् आश्चर्य हुआ । कारण, वह जानते थे कि शहानी-परिवार का कोई व्यक्ति आई. सी. एस. की परीक्षा पास करने के लिये विलायत नहीं गया है। बाकी रहा मेरा किशोर, सो वह बेचारा अपत्तियों का मारा, बेघर-बार, न जाने कहाँ ठोकरें खाता फिर रहा होगी । मेरे ऐसे भाग्य कहाँ कि मेरा खोया हुआ बेटा फिर मिल जाय, और फिर ऐसे प्रतिष्ठापूर्ण पद पर ! नहीं नहीं, वह अभागा दर-दर की ठोकरें खाता इस संसार से उठ गया होगा, अथवा कहीं दुःख-भरा जीवन व्यतीत कर रहा होगा। मैंने भारी भूल की कि समाज के भय और ऊँच-नीच के कुविचार के कारण उसका विवाह न किया, और धक्के देकर उसे घर से बाहर निकाल दिया । ऐसा आज्ञाकारी बेटा और लक्ष्मी जैसी पुत्रवधू किसी भाग्यशाली को ही मिलते हैं। मुझे मिले, किन्तु मैंने उन्हें घर से निकाल बाहर किया। हा ! में कितना पाषाण-हृदय, अन्यायी और पापी हूँ! ऐसा अत्याचार करने से पहले ही मुझे मौत क्यों न हो गयी ।