पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१९१

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कमला को मैं बचपन से जानता हूँ । उमका चाल-चलन सर्वथा निर्दोष था। वह किशोर से अत्यधिक प्रेम करती थी। दोनों छोटी आयु के बच्चे थे । भून कर बैठे। वे मेरी शरण आये थे। किन्तु मैंने उनको ठोकर मारकर घर से निकाल दिया ।हा ! खेद, महा खेद !! भगवन् मुझ अभागे पर दया करो, और मेरे किशोर को वापस ला दो।

कुछ ही दिन में यह सम्वाद नगर भर में घर-घर फैल गया कि मि० किशोर चंद रत्नचंद शहानी यहां के कलेक्टर होकर आये हैं। यह सम्वाद किशोर की माता भाग्यवती के कानों तक भी पहुँचा । अब तो नगर की नारियां उसे बधाई देने आने लगीं । इन आने वालियों का ऐसा ताँता लगा कि सन्ध्या तक वही कठिनाई से समाप्त हुआ। तत्पश्चात गाड़ी में बैठ कर वे अपने बेटे से मिलने के लिये चल पड़ी।

संध्या के कोई सात बजे होंगे । इभी समय एक चौपहिया गाड़ी किशोर के बंगले के भीतर आकर रुकी । कमला ने दूर से ही पहचान लिया, और भीतर जाकर किशोर को यह शुभ सम्वाद सुनाया । वह यह सुनते ही छोटे से बच्चे के समान नंगे पैर बाहर भागा। उसने झुक कर मामा के पैर छुए और फिर आदर-पूर्वक उन्हें अन्दर ले गया । कमला ने भी चरण छूकर उन्हें प्रणाम किया । भाग्यवती ने उसे छाती से लगा लिया और बिलख बिलख कर रोने लगा ! कमला भी जी भर कर रोयी। जब दोनों का हृदय हलका हुआ तब भाग्यवती बोली--बेटी कमलवाती ! जो कुछ भी हुआ है, उसे भूल जाओ । मैंने इतने दिन तुम दोनों के वियोग में जिस प्रकार बिताये हैं उसे ईश्वर