पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१९३

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सम्पत्ति तथा प्रतिष्ठा भी प्राप्त हो गयी । इसके बाद वह अपनी बैठक में जाकर मिश्र के साथ वातजाप में लीन हो गया।

अब कमला ने सुअवसर देखा तो ससुर के चरण छूने चली । रत्नचन्द उसे आते देख लज्जा के मारे धरती में गड़ा जाता था । किन्तु अब जाए तो कहाँ जाय? हा ! एक दिन निस सुशील लड़की को उन्होने अकारण बुरा-भल ही न कहा था; वरन् जिसे वेश्या तक कह डाला था, आज उसीके पश्चाताप की आग से उनका हृदय जला जा रहा था । इतने में कमला आ पहुँची, और उनके पैर छूने को झुकी। रत्नचन्द ने अपने पैर शीघ्रता से पीछे हटालिये, और बोले---“पुत्री ! मुझे मत छूना। तुम गंगा-जल के समान पवित्र हो, और मैं महापापी, अन्यायी और अत्याचारी हूँ। कमला ने सिर उनके पैरों पर रख दिया, और बोली---ऐसा न कहिये पिता जी ! मुझे इससे दुःख होता है। मेरे लिये तो ये चरण तीर्थ से भी बढ़कर हैं। आप मेरे पतिदेव के पिता हैं, इस लिये आप तो मेरे भगवान के भी भगवान् हैं । इन चरणों को स्पर्श करके तो मेरा जन्म सफल हो गया। मुझे खेद है कि इतने र्दीकाल तक में अपने पूज्य पिता को कुछ भी सेवा न कर सकी। मेरे दुर्भाग्य ने मुझे आपकी सेवा से वंचित रक्खा ।

उस नम्रता-पूर्ण वचनों से रत्नचंद के पश्चात्ताप की ज्वाला और भी तीव्र हो उठी। वे फूट-फूटकर रोते हुए बोले---बेटी कमलावती, तुम धन्य हो ! तुम प्राचीन काल की सुपुत्रियों के समान हो। तुम्हारे चरण पड़ने से मेरा घर और मेरा परिवार पवित्र हो गया। मेरी अपराध क्षमा करना बेटी !

उस दिन किशोरचन्द ने अपने मित्रों को, और कमलावती ने अपनी सहेलियों को प्रीतिभोज के लिए निमंत्रण दिया। दीवान