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जातिभेद का उच्छेद


दिया। दूसरे लोगों में क्षुधाओं से भी बढ़कर शूर प्रकृति देखी जाती थी । वह इनको युद्ध में रक्षक और भीतरी शान्ति के पालक का नाम देता है । कुछ दूसरे लोगों में वस्तुओं के मूल कारण को समझने की क्षमता दीखती थी । इनको उसने प्रजा के स्मृतिकार बना दिया। जो आपत्ति अफलातून की सामाजिक व्यवस्था ( Republic ) पर लागू होती है, वहीं चातुर्वर्ण्य-मर्यादा पर भी हो सकती है; क्योंकि इसमें भी यह मान लिया गया है कि मनुष्य-समाज को चार निश्चित श्रेणियों में ठीक-ठीक विभक्त किया जा सकता है । अफलातून के विरुद्ध एक बड़ी आपत्ति यह है कि मनुष्य और उसकी शक्तियों के सम्बन्ध में उसका मत बहुत ही ऊपरी है, इसलिए वह समझता है कि व्यक्तियों को कति- पय बिलकुल अलग-अलग श्रेणियों में वर्गीकरण किया जा सकता है । अफलातून को इस अपूर्व बात का अनुभव न था कि कोई भी दो व्यक्ति एक दूसरे के समान नहीं, अर्थात् किन्हीं भी दो व्यक्तियों को एक ही श्रेणी में इकट्ठा नहीं रखा जा सकता । एक व्यक्ति में जो प्रवृतियाँ काम करती हैं, वे दूसरे व्यक्ति की प्रवृत्तियों से असीम विभिन्न हैं, इसका उसे ज्ञान न था। किसी उर्दू कवि ने कहा भी है :-

तमाशागाहे आलम में हर इक इन्सान यकता है।

तिलस्माबादे कसरत में यही वहदत कहाती है।


वह समझता था कि व्यक्ति की रचना में विशेष नमूनों की क्षमतायें या शक्तियाँ हैं। उसकी ये सब धारणायें ग़लत सिद्ध की जा सकती हैं। आधुनिक विज्ञान ने यह दिखला दिया है कि व्यक्तियों को दो-चार स्पष्ट रूप से जुदी-जुदी श्रेणियों में वर्गी- करण करना मनुष्य के सम्बन्ध में बहुत उथले ज्ञान का प्रदर्शन