करना है और यह ज्ञान इस योग्य नहीं कि उम पर गम्भीर विचार
किया जाय , फलतः व्यक्तियों को थोड़ी भी श्रेणियों में बाँट कर
उनके गुणों का उपयोग नहीं किया जा सकता; क्योंकि व्यक्तियों
के स्वभाव-गुण सदैव अस्थिर और परिवर्तनीय होते हैं। जिस
कारण से अफलातून की सामाजिक व्यवस्था सफल नहीं हो सकी,
चातुर्वर्ण्य की विफलता का भी वही कारण है, अर्थात् मनुष्यों को
श्रेणियों में स्थिर कर देना सम्भव नहीं ।
चातुर्वण्र्य को सफल बनाने के लिए एक ऐसे दण्ड-विधान का होना आवश्यक है, जो डण्डे के ज़ोर से जनता से इसका पालन करा सके । चातुर्वर्ण्य-व्यवस्था के सामने इसको तोड़ने वालों को प्रश्न सदा ही बना रहना ज़रूरी है। जब तक लोगों के सिर पर दण्ड का भय न होगा, वे अपनी अपनी श्रेणी के भीतर नहीं रहगे । मनुष्य-प्रकृति के विपरीत होने के कारण, यह सारी व्यवस्था खड़ी न रह सकी। चातुर्वर्ण्य के अपने भीतर कोई ऐसा सहज सदगुण नहीं, जिसके बल-बूते पर वह कायम रह सके । इसको जीता रखने के लिए कानून का होना ज़रूरी है । रामचन्द्र द्वारा शुद्र शम्बूक की हत्या इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि दण्ड- विधान के बिना वर्ण-व्यवस्था नहीं चल सकती । कई लोग राम को दोषी ठहराते हैं कि उस ने अकारण ही ढिठाई से शम्बुक को मार डाला । परन्तु शम्बूक की हत्या के लिए राम को दोषी ठहराना सारो स्थिति को ठीक ठीक न समझना है। रामराज्य का आधार चातुर्वर्ण्य था। राजा होने के कारण चातुर्वर्ण्य-मर्यादा की रक्षा करना राम के लिए अनिवार्य था । शम्बूक ने क्योकि अपने वर्ण के कर्म का व्यतिक्रम किया था, इस लिए उसे मारना राम का कर्तव्य