पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/३

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प्राक्कथन

कुछ वर्ष हुए अछूतों के प्रसिद्ध नेता विद्वद्वर डाक्टर भीमराव अम्बेडकर ने हिन्दू-समाज से दुखी हो कर घोषणा की थी कि यद्यपि मैं हिन्दू पैदा हुआ हूँ, परन्तु मैं हिन्द नहीं मरूँगा। उस समय उन्होंने अपने दूसरे अछूत भाइयों को भी यही परामर्श दिया था कि तुम्हारा कल्याण हिन्दू-समाज का परित्याग कर के किसी दूसरे धर्म की शरण लेने में ही है। डाक्टर महोदय की इस वज्र घोषणा से धार्म्मिक जगत में भारी तहलका मच गया था। कुम्भकर्ण की निद्रा में सोए हुए हिन्दू-समाज ने भी एक बार आँखें खोल दी थीं।

ऐसे ही समय में, सन् १९३६ में, जात-पाँत तोड़क मण्डल ने एक बृहद् सम्मेलन कर के डाक्टर महोदय को उस के सभापति के आसन पर बैठाने का निश्चय किया। डाक्टर महोदय ने मण्डल की प्रार्थना को कृपापूर्वक स्वीकार भी कर लिया। मण्डल को पूर्ण आशा थी कि सभापति के आसन से डाक्टर महोदय जो भाषण करेंगे उस में हिन्दू-समाज की महा व्याधि का ठीक ठीक निदान मिलेगा। परन्तु खेद है कि अनेक कारणों से वह सम्मेलन न हो सका। किन्तु उस सम्मेलन के लिए डाक्टर महोदय ने जो अभिभाषण तैयार किया वह इतना सारगर्भित, इतना मार्मिक और इतना विद्वत्तापूर्ण था कि यदि हिन्दू-समाज उस पर शान्त भाव से विचार करे तो, कटु औषध के समान, वह उस की महाव्याधि को अवश्य दूर कर सकता है। आप के उसी अभिभाषण का हिन्दी भाषान्तर यह पुस्तक है। जाति-भेद की बुराइयों को दिखलाने वाला इस से उत्तम प्रबन्ध दूसरा मिलना कठिन है। मुझे आशा है, हिन्दू-समाज के हितैषी इस से लाभ उठाने का यत्न अवश्य करेंगे।

सन्तराम