पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८
जाति-भेद का उच्छेद


है, जिसे स्वतन्त्रता, महत्ता और कीर्ति का काल कह सकते है । वह मौर्य-साम्राज्य का काल है। बाकी सब कालों में देश पराजय और अन्धकार से ही पीड़ित रहा । परन्तु मौर्य-काल वह काल था, जब कि चातुर्वर्ण्य का पूर्ण विध्वंस हो चुका था, जबकि शूद्र, जो प्रजा का अधिकांश थे, होश में आ गये थे और देश के शासक बन गये थे । पराजय और अन्धकार के काल वे काल थे, जबकि चातुर्वर्ण्य खूब जोरों पर था और देश की अधिकांश प्रजा शूद्र के रूप में धिक्कारी जाती थी।

[ ८ ]

वर्ण-व्ववस्था की विफलता

चातुर्वर्ण्य सफल नहीं हुआ । सामाजिक सङ्गठन के रूप में इसका परीक्षण किया गया और यह फेल हो गया । कितनी बार ब्राह्मणों ने क्षत्रियों का बीज-नाश किया ? कितनी बार क्षत्रियों ने ब्राह्मणों का विध्वंस किया ? महाभारत और पुराण ब्राह्मणों और क्षत्रियों के कलहों की घटनाओं से भरे पड़े हैं । यदि ब्राह्मण और क्षत्रिय गली में मिल जाय, तो उनमें से किसको पहले प्रणाम करना चाहिए, या किस को रास्ता छोड़ देना चाहिए, ऐसी ही तुच्छ तुच्छ बातों पर वे लड़ पड़ते थे। न केवल ब्राह्मण ही क्षत्रिय की आँख में काँटा था, वरन् क्षत्रिय ब्राह्मण की भी आँख में काँटा था । ऐसा जान पड़ता है कि क्षत्रिय प्रजापीड़क बन गए थे, और दूसरे लोग जिन को चातुर्वर्ण्य-व्यवस्था के अनु- सार शस्त्र धारण करने का अधिकार न था, इनके अत्याचार से छुटकारा पाने के लिए परमात्मा से प्रार्थनायें करते थे। भागवत