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जाति-भेद का उच्छेद


पञ्जाब के ब्राह्मणों में और पञ्जाब के चमारों में क्या वंश-भेद है ? मद्रास के ब्राह्मणों में और मद्रास के परिया में वंश की क्या भिन्नता है ? पञ्जाब का ब्राह्मण वंश की दृष्टि से उसी जाति से है, जिसका कि पञ्जाब का चमार, और मद्रास का ब्राह्मण उसी वंश का है, जिसका कि मद्रास का परिया या अछूत ।

वर्ण-भेद वंश-विभाग को नहीं दिखलाता । वर्ण-भेद एक ही वंश के लोगों का सामाजिक विभाग है । परन्तु इसे वंश-विभाग माने कर भी प्रश्न उत्पन्न होता है--यदि विभिन्न वर्गों के बीच अन्तर्वर्गीय विवाहों द्वारा भारत में रक्त और वर्णो का मिश्रण हो लेने दिया जाता तो इस से क्या हानि हो सकती थी ? निस्सन्देह मनुष्य और पशु में इतना गहरा भेद है कि विज्ञान मनुष्यों और पशुओं को दो अलग अलग वर्ग मानता है। परन्तु वैज्ञानिक भी- जो वंश की शुद्धता में विश्वास रखते हैं यह नहीं कहते कि भिन्न भिन्न वंश (races) मनुष्यों के भिन्न भिन्न वर्ग (species) हैं। वे एक ही वर्ग के प्रकार-मात्र हैं। ऐसा होने से वे एक दूसरे में सन्तान उत्पन्न कर सकते हैं और उनकी सन्तान बाँझ नहीं होती, वरन् आगे बच्चे पैदा कर सकती है।

वर्ण-भेद के समर्थन में वंश-परम्परा (heredity) और सुप्रजनन-शस्त्र (Eugenics) को लेकर बहुत सी मूर्खतापूर्ण बातें कही जाती हैं। यदि वर्ण-भेद सुग्रजनन-शास्त्र के मौलिक सिद्धान्तों के अनुसार हो, तो बहुत थोड़े लोग इस पर आपत्ति करेंगे, क्योंकि विवेक-पूर्वक जोड़े मिला कर वंश को सुधारने पर बहुत थोड़े मनुष्य आपत्ति कर सकते हैं । परन्तु यह बात समझ में नहीं आती कि वर्ण-भेद से सविवेक विवाह कैसे होते हैं। वर्ण-भेद एक ऋणात्मक वस्तु है। यह विभिन्न वर्णों के लोगों को आपस में