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जाति-भेद का उच्छेद


कान्फरेन्स दोनों एक ही कार्य के दो अङ्गों की तरह मिलकर काम करती रहीं । दोनों का वार्षिक अधिवेशन एक ही पण्डाल में होता था । परन्तु जल्दी ही दो दल पैदा हो गये -- एक राजनीतिक सुधार-दल और दृसरा समाज-सुधार दल । दोनों में प्रचण्ड विवाद छिड़ गया । राजनीतिक सुधार दल राष्ट्रीय काँग्रेस का समर्थन करता था और समाज-सुधार दल सोशल कान्फरेन्स का। इस प्रकार दोनों संस्थायें एक-दूसरे के विरोधी दल बन गयीं । विवादास्पद विषय था कि क्या राजनीतिक सुधार के पहले सामाजिक सुधार आवश्यक है। कोई दस वर्ष तक दोनों शक्तियाँ बराबर-बराबर तुली रहीं, कोई भी दल दूसरे को दबा न सका । परन्तु यह बात स्पष्ट दीख रही थी कि सोशल कान्फरेन्स का भाग्य-नक्षत्र शीघ्रता से अस्त हो रहा है।

जो लोग सोशल कान्फ्रेन्स के अधिवेशनों के प्रधान बनते थे, वे शिकायत करते थे कि अधिकांश सुशिक्षित हिन्दू राजनीतिक प्रगति चाहते हैं। और समाज-सुधार के प्रति उदासीन हैं। काँग्रेस में भाग लेने वालों की संख्या बहुत अधिक होती थी । उस से सहानुभूति रखने वालों की संख्या उन से भी अधिक थी । परन्तु सोशल कान्फरेन्स में सम्मिलित होने वालों की संख्या इन से बहुत ही कम होती थी। जनता की इस उदासीनता के शीघ्र ही बाद राजनीतिको ने खुल्लम खुल्ला सामाजिक सम्मेलन का विरोध आरम्भ कर दिया । काँग्रेस पहले सामाजिक सम्मेलन के लिए अपना पण्डाल दिया करती थी । परन्तु अब श्री बाल गङ्गाधर तिलक के विरोध करने पर काँग्रेस ने अपना पण्डाल बना भी बन्द कर दिया । शत्रुता का‌