पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५६
जाति-भेद का उच्छेद

[१९]

वर्ण-भेद को मिटाने के उपाय

अब प्रश्न यह है कि जाति-भेद को नष्ट कैसे किया जाय ? हिन्दुओं की सामाजिक व्यवस्था का सुधार कैसे हो ? यह प्रश्न बड़े ही महत्व का है। कुछ लोगों की सम्मति है कि जाति-भेद को मिटाने के लिए पहले उपजातियों को मिटाना चाहिए। जिन लोगों को यह, विचार है वे समझे हुए हैं कि उपजातियों के रीति-रिवाज और सामाजिक स्थिति में मुख्य जातियों की अपेक्षा अधिक सादृश्य है ! मैं समझता हूंँ, उन की यह कल्पना अशुद्ध है। उत्तरी और मध्य भारत के ब्राह्मण बम्बई और मद्रास के ब्राह्मणों की तुलना में सामाजिक रूप से निचले दर्जे के हैं। पूर्वोक्त तो केवल रसोइए और पानी भरने वाले ही हैं, परन्तु शेषोक्त की सामाजिक स्थिति ऊँची है। इसके विपरीत उत्तर भारत में वैश्य और कायस्थ बौद्धिक और सामाजिक रूप से बम्बई और मद्रास के ब्राह्मणों के बराबर हैं।

फिर भोजन के विषय में बम्बई तथा मद्रास के ब्राह्मणों में, जो निरामिष भोजी हैं और काश्मीर तथा बङ्गाल के ब्राह्मणों में, जो मांसहारी हैं, कोई सादृश्य नहीं । इस के विपरीत बम्बई तथा मद्रास के ब्राह्मण भोजनकी बातों में गुजराती, मारवाड़ी, बनिये और जैन आदि निरामिष-भोजियों से अधिक मिलते हैं । इस में कुछ भी सन्देह नहीं कि एक जाति से दूसरी जाति में जाने के दृष्टिकोण से उत्तर भारत के कायस्थों और मद्रास के दूसरे ब्राह्मणों- तरों का अम्बई तथा द्रविड़ देश के बाह्मणेतरों के साथ मिश्रण