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वर्ण-भेद को मिटाने के उपाय


मद्रास के ब्राह्मणों के उत्तर के ब्राह्मणों के साथ मिश्रण की अपेक्षा अधिक व्यवहार्य है। परन्तु यदि पल भर के लिए मान भी लिया जाय कि उपजातियों का मिश्रण सम्भव हैं तो इस बात की क्या ज़मानत है कि उपजातियों को तोड़ देने से मुख्य जातियाँ भी जरूर टूट जायेंगी ? इसके विपरीत हो सकता है कि उपजातियों के टूटने के साथ ही काम बंद हो जाय । ऐसी अवस्था में, उपजातियों के टूटने से मुख्य जातियों की शक्ति ही बढ़ेगी, जिससे वह अधिक बलवान बन कर अधिक अनिष्ट करने लगेंगी। इस लिए यह उपाय न तो साध्य है और न कार्यकर ही । यह आसानी से एक गलत इलाज साबित हो सकता है।

जाति-भेद को नष्ट करने के लिए काम करने की दूसरी पद्धति यह कही जाती है कि पहले अन्तरवर्गीय सहभोज आरम्भ किए जायें । मेरी राय में यह उपाय भी अल्प है। अनेक जातियाँ ऐसी हैं जिन में सहभोज होता है । परन्तु यह सब किसी के अनुभव की बात है कि सहभोज जाति-भेद के भाव को और जाति-भेद की चेतना को मारने में सफल नहीं हुआ। मेरा विश्वास है कि वास्तविक उपाय अन्तरवर्णीय विवाह है । केवल रक्त का मिश्रण ही स्वजन और मित्र होने का भाव पैदा कर सकता है। जब तक मित्र होने, भाई-बन्धु होने का भाव प्रधान नहीं होता, जाति-भेद द्वारा उत्पन्न किया हुआ वियोजक भाव, पराया होने का भाव, कभी दूर न होगा । अन्तर्जातीय विवाह को हिन्दुओं के सामाजिक जीवन में जितना प्रबल साधन होने की आवश्यकता है उतनी अहिन्दुओं के सामाजिक जीवन में नहीं । जहाँ समाज पहले ही दूसरे बन्धनों से आपस में खूब ओत-प्रोत हो, वहाँ विवाह जीवन की एक साधारण सी घटना होती है। परन्तु जहाँ